शनिवार, 9 मई 2020

मदर्स डे विशेष: ये माता बनी आदर्श मां का उदाहण......


देशभर में कल यानी 10 मई को मदर्स डे मनाया जाएगा। वैसे तो मां के प्यार और दुलार का कोई मोल नहीं मगर फिर भी माताओं के त्याग का शुक्रिया करने के लिए हर साल लोग मदर्स डे सेलिब्रेट करते हैं। पश्चिमी देश से आए इस मदर्स डे को भारत में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
बात करें अगर माताओं की तो हिन्दू धर्म में भी बहुत सी मां ऐसी रहीं जिनके दिव्य ज्ञान से उनके पुत्र महान बनें या जिन्हें आज भी पुराणों में याद किया जाता है। कहते हैं शिशु की पहली गुरु उनकी मां ही होती है।
एक मां ही बच्चे को जीवन का पहला पाठ पढ़ाती है।
आइए मदर्स डे के इसी मौके पर हम अपाको बताते हैं ऐसी ही माताओं के बारें में जिन्होंने अपने पुत्रों को श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान की और वे आगे चलकर पूरे समाज के लिए आदर्श के रूप में पहचाने गए।
1. कौशल्या बनीं आदर्श मां का उदाहण
माता कौशल्या, प्रभु श्री राम की मां थीं। कौशल्या की दी हुई शिक्षा के कारण ही श्रीराम, मर्यापुरुषोत्तम कहलाए। तुलसीदास रचित रामचरितमानस में कौशल्या ने एक आदर्श मां के रूप में पुत्र को धर्मा का ज्ञा दिया था। धर्म-अधर्म पर विचार करके वह बेटे को वनवास जाने को कहती हैं ताकि वो पिता की आज्ञा का पालन करें। जिसे उन्होंने सब धर्मों का शिरोमणि धर्म बताया है।
2. यशोदा मां
भगवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म देवकी गर्भ से मथुरा के राजा कंस के कारागार में हुआ था। कंस से रक्षा के लिए वासुदेव ने जन्म के बाद आधी रात को उन्हें यशोदा के घर गोकुल में छोड़ आए। इसी के बाद से ही श्रीकृष्ण का पालन पोषण यशोदा ने किया। यशोदा ने अपना पूरा प्यार और स्नेह श्रीकृष्ण पर लुटा दिया। यशोदा मां के लिए कहा जाता है कि जन्म देने वाले से बड़ा पालने वाला होता है।
3. कुंती
युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन कुंती के पुत्र थे जबकि नकुल और सहदेव राजा पांडु की एक अन्य पत्नी माद्री की संतान थे। इसके बाद भी कुंती ने कभी भी माद्री के पुत्रों को अपने पुत्रों से कम नहीं समझा। कभी कोई भेदभाव नहीं किया। अपने पुत्रों को हमेशा श्रेष्ठ शिक्षा दी और धर्म के मार्ग पर चलते रहने को कहा।
4. अनुसूया
पुराणों के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती को अपने ऊपर अत्यंत गर्व हो गया। भगवान ने उनके अंहकार को नष्ट करने के लिए लीला रची। नारद मुनि उन त्रिदेवियों के पास जाकर कहने लगे कि महर्षि अत्रि की पत्नी अनुसूया के सामने आपका सतीत्व कुछ नहीं। तीनों देवियों ने ये बात अपने स्वामियों को बताई और उनसे अनुसूया के पातिव्रत्य परीक्षा लेने को कहा।
इसके बाद त्रिदेव, शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधुवेश बनाकर अत्रि मुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। तीनों ने देवी अनुसूया से भिक्षा मांगी मगर यह कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। अनुसूया पहले तो यह सुनकर चौंक गई, लेकिन फिर साधुओं का अपमान न हो इस डर से उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और बोला कि यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं। तुरंत तीनों देव शिशु होकर रोने लगे।
इसके बाद अनुसूया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया। उधर जब तीनों देव नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। इसके बाद तीनों देवियां अनुसूया के पास आईं और क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूया ने त्रिदेव को अपने पूर्वरूप में कर दिया।
इसके बाद त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें